मोहब्बत और जाम से डर लगता है,
जिसमें तुम बिछड़ी थी , उस अंधेरी रात से डर लगता है।
कहते थे दोस्त मेरे सभी मुझे , कैसा बंदा है जो हर चीज से डरता है।
मोहब्बत में तेरी अब और नहीं टूट सकता मैं,
रोज रोज महफ़िलों में तेरा ज़िक्र नहीं कर सकता,
क्योंकि….. !
जब पूछता है कोई मोहब्बत अपनी के बारे में,
तो आज भी नाम तेरा बताने से डर लगता है।।
संदीप 421